क्या टिप्पणी पाने के लिए खुद भी टिपियाना ज़रूरी है ??? - हिन्दी ब्लॉग टिप्स

Breaking

Saturday, July 11

क्या टिप्पणी पाने के लिए खुद भी टिपियाना ज़रूरी है ???

आज शनिवार है तो सोचा कि क्यों न कुछ हल्की फुल्की बात की जाए। मन में विचार आया कि हिन्दी ब्लॉग टिप्स पर साथियों को ब्लॉगिंग के विषयों पर विचार-विमर्श का ऐसा मंच दिया जाए, जिस पर वे अपनी बात खुलकर कह सकें। सभी का स्वस्थ मनोरंजन भी हो और हिन्दी ब्लॉगिंग के कुछ अनछुए पहलुओं को भी टटोला जा सके।

आज के विचार-विमर्श का मुद्दा है-

क्या हिन्दी जगत में ब्लॉग पर टिप्पणी पाने के लिए खुद भी उनके ब्लॉग पर टिपियाना ज़रूरी है ???

इस मुद्दे पर आपकी राय सभी के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है, इसलिए कमेंट जरूर कीजिए। हो सकता है कि अगर यह बात स्थापित हो गई कि टिप्पणी के बदले ही टिप्पणी मिलती है तो मैं आपके ब्लॉग पर टिपियाने आ जाऊं :)

नोटः मिसाल के रूप में किसी ब्लॉग या ब्लॉगर विशेष का नाम लिया जाना वर्जित है। साथ ही बहस में अनाम (या छद्म नाम वाले) टिप्पणीकारों की टिप्पणियां भी शामिल नहीं होंगी।




क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए ना !!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!

61 comments:

  1. बहुत हद तक सही है.. हिन्दी में लेखक ही पाठक है.. और पाठक ही लेखक है.... टिप्पणी से ज्यादा महत्तपूर्ण है पाठक कितने है.. अगर आपका लेखन बहुत extra ordinary हे तो पाठक भी मिलते है और टिप्पणी भी.. पर यदि हम सामान्य लेखक है तो कम पाठक कम टिप्पणी... पर टिप्पणी करना पाने कि गांरटी नहीं है..

    तो आप भी आ रहे है न टिप्पणी करने..:)

    ReplyDelete
  2. किसी रचना के रूप में अपने विचारों को अधिक से अधिक लोगों तक कैसे पहुंचाया जाए .. यह एक ब्‍लागर के लिए बडा मुद्दा हो सकता है .. पर उस रचना पर अधिक से अधिक टिप्‍पणी पाना इतना बहुत बडा मुद्दा नहीं होना चाहिए .. कि उसके लिए व्‍यर्थ ही दूसरों के ब्‍लाग पर टिपियाया जाए .. हां , रचना को पढते समय इसके पक्ष या विपक्ष में पाठक के दिमाग में कोई बात आ जाए .. तो उसपर टिपियाना पाठकीय दायित्‍व है .. इसका पालन होना ही चाहिए।

    ReplyDelete
  3. nahin jarurii nahin haen tippani tabhie karnai chahiyae jab aap blogpost mae kuchh aur jodna chahey yaa aap apni baat kehna chahey

    Rachna

    ReplyDelete
  4. संयोग वश मई ही पहले आ गया | टिप्पणी पाने के लिए करना कोई जरूरी नहीं है | यह बिलकुल एक स्वायत्त कर्म है | लेकिने यदि कोई आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करके, अपने ब्लॉग पर आपकी नजरें इनायत चाहता भी है तो इसमें तो यह बिलकुल स्वाभाविक है |
    "मई उम्मीद कराता हूँ कि आप मेरे ब्लॉग पर आइये और हालिया पोस्ट "हिंडे ब्लॉग्गिंग में टिप्पणी के महत्व" पढिये |

    "बापू बोले तो पूरी विनम्रता के साथ टिप्पणी करते रहो | एक दिन ब्लोग्गर का दिल पिघलेगा और वह तुम्हारा ब्लॉग सिर्फ पढेगा ही नहीं, उस पर टिप्पणी भी करेगा|"

    ReplyDelete
  5. mere khyal se agar aapke paas koi aisa paathak hai jo apne blog par tipiyaye jane par hi aapke paas aata hai to vaisa pathak kisi kam ka nahi hai..

    ReplyDelete
  6. नहीं. जरूरी नहीं है.

    ReplyDelete
  7. किसी टिप्पणीकार की टिप्पणी अधिक पसन्द या नापसन्द होने पर टिप्पणी के बदले मे टिप्पणी करने मे कोई बुराई नही है।

    ReplyDelete
  8. नहीं. जरूरी नहीं है.

    ReplyDelete
  9. बहुत दिनों बाद आप ने तकनीक से हट कर पोस्ट लिखी है.
    यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सब के विचार अलग अलग हो सकते हैं.
    मेरे ख्याल से टिप्पणी के बदले टिप्पणी दो ब्लागरों का आपस में पहचान & संवाद मजबूत करती है.
    और दो ब्लागरों के बीच ब्लोगिया सम्बन्ध मजबूत होता है.

    लेकिन सिर्फ इस ख्याल से की कोई तभी टिप्पणी करे जब अगला भी उसे टिप्पणी करे तो यह एक गलत सोच है.

    अपनी बात कहूँ तो कई बहुत अच्छा लिखने वाले सीनियर हैं जो कभी मेरे ब्लॉग पर नहीं आये ..मगर उन के लिखे पर मुझे अपने विचार देने में कोई हर्ज़ नहीं होता क्योंकि उनका लिखा कुछ नयी सीख देता है.
    मेरी समझ में जब जिसे समय और सुविधा हो ,दिल करे...टिप्पणी / अपने विचार पोस्ट के liye दे दे ,नहीं तो bhi कोई बात नहीं.
    हाँ ,मेरे ब्लॉग पर जो पहली बार टिपियाता है मैं उस का ब्लॉग जरुर विसिट करती हूँ.
    बाकि हर किसी से टिप्पणी के बदले टिप्पणी की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये.
    हाँ अगर, पुराने साथी ब्लॉगर आप की नयी पोस्ट पर ३-४ दिन नहीं आते तो चिंता जरुर होती है की क्या बात हो गयी??उन से प्रश्न और उनके विचारों की अपेक्षा करना ब्लॉगर का अधिकार है.
    बाकि कर्म किये जाईये...फल अपने आप मिल जायेगा..

    ReplyDelete
  10. किसी टिप्पणीकार की टिप्पणी अधिक पसन्द आने पर या सख्त नापसन्द होने पर टिपियानो में कोई बुराई नही है।

    ReplyDelete
  11. यह बिलकुल जरुरी नहीं की केवल इसलिए आप किसी को टिपण्णी करे की वो भी आप के ब्लॉग पर टिपण्णी करे हा यदि आपके ब्लॉग में दम है तो निश्चित रूप से आपको टिपण्णी मिलेगी वैसे भी कभी भी हमें केवल इस आशा से किसी को भी कभी भी टिपण्णी नहीं करनी चाहिए की एइसा करने से शायद वो भी भी मुझे टिपियायेगा

    ReplyDelete
  12. इस बात पर विचार तो तब जब टिप्पणी के लिये कोई विशिष्ट प्रकार का लेखन करे । जिस लेखन का उद्देश्य टिप्पणी पाने से इतर कुछ रचनात्मक या महत्वपूर्ण रचना है, वह टिप्पणी-प्राप्ति की इस इच्छा से अपने को मुक्त कर देता है ।
    हाँ, जो रच दिया गया - वह सर्वस्वीकृत और प्रशंसित हो - यह तो हर संवेदित मन की चाह होगी ।

    अतः सोद्देश्य सर्जना या अवदान करने वाला न केवल अपने हिस्से का काम कर जाता है बल्कि ऐसे किसी अन्य प्रयास को निर्विकार भाव से प्रेरित करने और प्रशंसित करने का सहज कार्य करता है । यही कारण है कि बेहतर चिटठों पर अपने आप टिप्पणियाँ आने लगती हैं ।

    चूँकि आपने नाम लेने से मना किया है अन्यथा मैं एक महनीय चिट्ठाकार का नाम लेता जिन्होने मेरे सप्रयास टिप्पणी करने को न केवल पहचाना, बल्कि मुझे यह भी कहा कि मैं केवल पढ़ कर ही लौट सकता हूँ उनके चिटठे से - बिना टिप्पणी किये । यह सोदेश्यता और निष्ठा जब तक विद्यमान है - कोई न तो लेखन का कोई तरीका निर्मित कर सकता है न टिप्पणीकारी का ।

    जहाँ तक टिप्पणि के बदले टिप्पणी का प्रश्न है - यह प्रयोजनवश होने वाला कार्य नहीं । यह तो सहज ही हो जाता है । और यह होता रहे तो ही ठीक - बस इतना खयाल रहे कि वह टिप्पणी चिट्ठा्कार की प्रविष्टि को पढ़ने के बाद की जाय, न कि किसी बद्ध्, प्रारूपित स्वरूप या केवल धन्यवाद ज्ञापन के रूप में ।

    ReplyDelete
  13. महत्वपूर्ण है आप ब्लॉग क्यों लिखते हैं ? चिट्ठे जितने पढ़े जाते हैं उतने टिपियाये नहीं ये तो कोई भी काउंटर लगा कर जाना जा सकता है . मानव स्वभाव है उम्मीद रखना :)

    ReplyDelete
  14. बहुत सही प्रश्न किया है आपने ...ये ज़रूरी भी है और नही भी ...ज़रूरी इसलिए कि जब आप अपना ब्लॉग शुरू करते हैं तो अन्य ब्लॉगर को बताना भी है कि आप भी यहाँ कुछ लिख रहे हैं ....पर ये ज़रूरी नही कि कि आप उसी ब्लॉग पर टिप्पणी करेंगे जो आपके ब्लॉग पर टिप्पणी दे ... बहुत से लोग पढ़ कर बिना कुछ कहे आगे बढ़ जाते हैं ...और बहुत से लोग पढ़ कर अपने विचार लिख देते हैं ....और इन टिप्पणियों मे अच्छी या बुरी सभी हो सकती हैं ...अपने अपने विचार हैं अपना नज़रिया है इसका बुरा भी नही मानना चाहिए ....हर ब्लॉगर यहाँ चाहता है उसके ब्लॉग पर ज़्यादा से ज़्यादा टिप्पणी हो .,... टिप्पणी करने से पता चलता है कि आपके ब्लॉग को कितने लोग पढ़ते हैं.

    ReplyDelete
  15. नहीं, ज़रूरी तो नहीं पर समय बीतते-बीतते, दोनों में एक अनकहा संवाद स्थापित हो जाता है जिसके चलते मैं भी टिप्पणी करने वाले ब्लागर का ब्लाग फीड में जोड़ कर नियमित पढ़ने की कोशिश करता हूं. हिन्दी के अलावा मेरी फीड में अंग्रेज़ी के भी बहुत से ब्लाग है, मुझे याद नहीं कि उनके ब्लागरों ने कभी मेरे कार्टूनों पर प्रतिक्रिया दी हो (भले ही मेरा ब्लाग हिंदी में है).

    भाई आषीश जी, मैं ऐसे भी बहुत से ब्लाग पढ़ता हूं जिनके लेखकों ने पता नहीं कभी मेरा ब्लाग देखा भी हो या नहीं. पढ़ने के बाद यदि पोस्ट निराश करे तो मैं टिप्पणी नहीं करता, यद्यपि मैं टिप्पणी करने से गुरेज़ भी नहीं करता. अलबत्ता, दूसरे ब्लागर मित्रों के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता.

    ReplyDelete
  16. टिप्पणी के बदले टिप्पणी न सिर्फ एक प्रकार से receiving सी सुचना हो जाती है, बल्कि यह आपसी सम्मान को भी दर्शाता है, अन्यथा कहीं ऐसा आभास भी हो सकता है, मैं और मेरी पोस्ट तो अपनी महानता के कारण टिप्पणी के सर्वथा योग्य तो थी ही. ऐसा करना संवाद को एकतरफा होने से रोकने में भी सहायक होता है. हाँ यदि पोस्टकार की व्यस्तता या मज़बूरी है तो टिप्पणीकर्ता उसकी स्थिती को न समझे ऐसा अपरिपक्व हिंदी ब्लॉग जगत लगता नहीं.

    ReplyDelete
  17. दरअसल आज कल ज्ञान की कमी नहीं है ! किसी को एक बार छेड़ लो तो फिर ज्ञान का सैलाब बिखेरने लग जाता है इसलिए लोग उन्ही की बात सुनते है जो उनको सुनता है ! इस दृष्टि से टिप्पणी दो. टिपण्णी लो वाला fundaa है !!

    ReplyDelete
  18. जी कतई जरूरी नहीं। आप अच्छा लिखेंगे, तो लोग खुद-ब-खु आयेंगे टिप्पणी करने।

    ReplyDelete
  19. हमें किसी की लिखी बात पसंद आती है, तभी हम वहां पर टिपप्णी करते हैं। ऐसे में यह मानसिकता पालना गलत है कि टिप्पणी दो और टिप्पणी लो। ऐसा करने का सीधा सा मतलब यह है कि आप टिप्पणी के भूखे हैं। वैसे टिप्पणी की भूख गलत नहीं है, लेकिन जब आप टिप्पणी के बदले टिप्पणी की भूख शांत करने की मानसिकता में रहते हैं तो यह गलत है। जरूरी नहीं है कि जिसके लेख में हमने टिप्पणी की है, उनको हमारा लेख पसंद आए ही, ऐसे में वह टिप्पणी नहीं करेगा, तो क्या इसका मतलब यह है कि हम अगली बार उनके अच्छे लेख पर टिप्पणी ही न करें। अगर हम ऐसा करते हैं तो यह न सिर्फ उन अच्छे लिखने वालों के साथ अन्याय है बल्कि हम अपने जमीर से भी गिरते हैं। भले आज का जमाना एक हाथ दे एक हाथ ले जैसा हो गया है, लेकिन इस भावना को बदलने की जरूरत है और यह भावना बदलनी ही चाहिए। हमें तो लगता है कि वास्तव में आज ब्लाग बिरादरी में यही प्रचलन हो गया कि टिप्पणी दे और टिप्पणी लें, वरना कई अच्छे लेख लिखने वालों के टिप्पणी बक्से खाली नहीं होते। हमें नही मालूम लोगों की मानसिकता में बदलवा आएगा या नहीं लेकिन हम ऐसा सोचते हैं कि मानसिकता का बदलना जरूरी है। वरना एक दिन वह आएगा जब अच्छे लिखने वालों का टोटा पड़ जाएगा।

    ReplyDelete
  20. बड़े बड़े ज्ञानी बोल चुके, अब मेरे लिए कुछ शेष नहीं रह जाता. बस, स्व विवेक की बात है-अदला बदली कैसी.

    नाम लेने पर आपने पाबंदी लगा दी है वरना टिप्पणी चर्चा चले, और हमारा नाम न आये, हा हा!

    ReplyDelete
  21. एक बात और जोड़ना चाहूँगा कि अक्सर नए ब्लोग्स का हम टिप्पणियों द्वारा स्वागत करते हैं, और पहली बार में ही शायद ही कोई follower बन जाता हो. यदि प्रत्युत्तर में उन्होंने संपर्क नहीं किया तो रोज आते ब्लोग्स की भीड़ में हम उन्हें भूल भी जाते हैं; क्योंकि दुर्भाग्य से ब्लौगिंग में 'प्रोफाइल विजिटेड' जैसा कोई विकल्प नहीं. आशीष जी यदि इस तकनिकी पहलु पर भी कोई समाधान सूझा सकें तो आभारी रहूँगा.

    ReplyDelete
  22. अच्छा मुद्दा है. "टिप्पणी पाने के लिये टिपियाना ज़रूरी है?" तो आशीष जी, टिप्पणी पाने के लिये तो नहीं लेकिन सभी ब्लौगर बन्धुओं से परिचित होने और अपना परिचय देने के लिये टिपियाना ज़रूरी है. फ़िर यदि किसी के लिखने में दम है,तो ब्लौग पर आने वाला कोई भी अन्य ब्लौगर टिप्पणी किये बिना कैसे रह सकेगा? अच्छे लेखक हमारे अपने ब्लौग पर आयें ऐसा कौन नहीं चाहता? टिप्पणियां ये भी ज़ाहिर करती हैं कि आपका लिखा न केवल स्वीकार किया जा रहा है, वरन उसे लोग पसन्द भी कर रहे हैं. ऐसे में लेखन की सार्थकता सिद्ध होती है. हां, टिप्पणी पाने के लिये टिपियाना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है. टिप्पणियां ब्लौगर्स के आपसी रिश्तों को मजबूत बनाती हैं ये उदाहरण तो मैं कई बार देख चुकी हूं कि साथी ब्लौगर को अन्य किसी अनाम टिप्पणीकार के वार से कैसे बचाया जाता है, ये भी देखा है. तो ये सब टिप्पणियों के ज़रिये ही सम्भव हुआ वरना हम सब की पुरानी पहचान तो है नहीं. लेकिन तब जब्कि हम केवल ब्लौग्स के ज़रिये एक दूसरे से जुडे हैं, क्या हमारे बीच आत्मीयता नहीं हो पाई? हुई है, माध्यम हैं यही टिप्पणियां.

    ReplyDelete
  23. बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है आपने ...........मेरी सोच तो ये है की लिखने वाला जब लिखता है तो उस वक़्त वो ये सोचकर नही लिखता की उसे कितनी टिप्पणियां मिलेंगी इसलिए सिर्फ टिपण्णी प्राप्त करने के लिए दुसरे ब्लोग्स पर जाना कोई ठीक बात नही है . क्यूंकि अगर आपकी पोस्ट सशक्त होगी तो टिपण्णी अपने आप मिलती रहेंगी.

    ReplyDelete
  24. जी बिल्कुल जरुरी नहीं।

    ReplyDelete
  25. टिप्पणी करना कर्म तो टिप्पणी पाना धर्म।
    ब्लागर के सम्बन्ध का यहाँ छुपा है मर्म।।

    अच्छी रचना जो लगे लिखें वहाँ पर खास।
    रचनाकारों का तभी बढ़ता है विश्वास।।

    नव लेखक रचना करे दोष कहीं और जोश।
    समय पे देकर मशविरा उसे दिलायें होश।।

    अलग अलग सब लोग हैं उनके अलग विचार।
    टिप्पणी देकर ही सही बढ़े सभी का प्यार।।

    बदले में टिप्पणी मिले सोचा कभी न जाय।
    गलती को गलती कहें सुमन कहे समुझाय।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  26. यदि आप मनोज बाजपेयी ...यदि आप नियमित और अछे लेखक हैं....यदि आपका दायरा बहुत बड़ा है ( यहाँ दायरे से मतलब है ब्लॉगजगत में , अरु जाहिर है की ब्लॉग्गिंग में आपका दायरा टीपने ,पढने , पढाने से ही बना होगा, ) तो बिलकुल भी नहीं ..लेकिन अगर कोई सिर्फ इसलिए टीपता है की बदले में उसे टिप्प्न्नी मिलेंगी..तो कुछ दिनों तक तो शायद मिल भी जाती हैं..मगर अंततः ..जो अच्छा है वही पढा जाता है ..और उन्हें ही लोग टीपते भी हैं..मगर तिप्प्न्नियों का मनोविज्ञान ..अभी तक तो बिकुल पहेली की तरह ही है मेरे लिए...

    ReplyDelete
  27. Tippaniyan padh kar bhi bahoot kuch seekhne ko mil gayaa hamen to.......

    ReplyDelete
  28. tippni karna jaruri to nhi par ak se dusre blog tak phunchne ke liye tippni hi jariya hai.

    ReplyDelete
  29. मेरे विचार भी सभी ब्लोगरो से मिलते जुलते ही है । टिप्पणी पाना सभी को अच्छा लगता है । प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है । लेकिन झूठी प्रशंसा तो सभी को बुरी लगती है । मेरे जैसे साधारण आदमी को जिसे हिन्दी का ठीक से ज्ञान नही है और मुझे कोई विद्वान कहे तो कैसा लगेगा ..... । मै ब्लोगो को पढ़ने और टिप्पणी देने मे दो बातों का ध्यान रखता हू पहली बात या तो वो ब्लोग या पोस्ट मुझे पसन्द हो मेरी रूची के हो या दूसरी बात वो ब्लोगर बन्धु मेरे ब्लोग पर टिप्पणी देते हो । मै टिप्पणी देने और बदले मे टिप्पणी पाने की आशा रखने को गलत नही मानता हू ।

    ReplyDelete
  30. मेरे हि‍साब से यह कुछ-कुछ सही है। टि‍प्‍पणी दरअसल न केवल आपका मंतव्‍य आपतक पहुँचाता है बल्‍ि‍क ब्‍लॉग में अपनी सक्रि‍यता भी दर्शाता है। मतलब अपनी उपस्‍थि‍ति‍ दर्ज कराने के लि‍ए आप सि‍र्फ पोस्‍ट लि‍खकर नहीं बैठ सकते, आपको अपनी पसंद की पोस्‍ट पर राय भी जरूर जाहि‍र करनी चाहि‍ए, यहॉं वो लोग नहीं चल पाते जि‍नके लि‍ए कहावत है-
    गूँगा केरि‍ सरकरा खावै और मुस्‍काए:)

    ReplyDelete
  31. जरुरी नहीं।

    ReplyDelete
  32. टिप्पणी पाने के लिए टिप्पणी करना जरूरी भी है और नहीं भी। बहुत से ब्लाग ऐसे हैं जो बिलकुल टिप्पणी नहीं करते पर उन पर दनादन टिप्पणी आतीं हैं।
    कुछ बलागर ऐसे हैं जो कभी-कभी टिप्पणी करते हैं और उनके ब्लाग पर भी कुछ गिनी-चुनी टिप्पणी आतीं हैं।
    कुछ ऐसे हैं जो बराबर टिपियाते हैं और उनको ही बराबर टिप्पणी मिलती है।
    एक बात बड़ी ही गोपनीय...वो यह कि कुछ खास लोग बड़े ही खास ब्लाग पर टिपियाने जाते हैं। हो सकता है कि ये बात उन लोगों को बरी लगे पर हम तो एक आपरेशन चला चुके हैं और हमारे पास सबूत है लोगों के टिपियाने और कहाँ-कहाँ टिपियाने का।
    बहरहाल छोड़िये, आपरेशन की बातें। खास बात ये है कि कई बार पढ़ा हुआ मन को इतना अच्छा लगता है कि उस पोस्ट पर कुछ भी टिप्पणी कर देने का मन करता है।
    कई बार तो देखा है कि पोस्ट में कुछ भी नहीं है फिर भी ले दनादन क्योंकि वे करवा चुके हैं दनादन अपने ब्लाग पर।
    क्या पोस्ट के द्वारा किसी खुषखबरी और किसी की मृत्यु का समाचार वाकई ऐसा है कि उस पर आधा सैकड़ा तक टिप्पणी आयें और क्या कोई पोस्ट जो देश की समस्या, सुरक्षा आदि को बड़े ही तथ्यात्मक रूप से दिखा रही है वहाँ बस दो-चार कमेंट?
    हमारा विचार है (बहुत सारे ब्लाग को देखने के बाद) कि यहाँ भी एक प्रकार का समाज काम करता है, एक गुटबन्दी काम करती है। एसी के तहत टिप्पणी आती है जाती है।
    आप अपना नोट (नोटः मिसाल के रूप में किसी ब्लॉग या ब्लॉगर विशेष का नाम लिया जाना वर्जित है।) पहले लिख चुके हैं नहीं तो हम नाम भी बता देते।
    चलिए समाज तो बना है कहीं भी बने। सौहाद्र तो बना है कहीं भी बने। एका तो है कहीं भी है। लेन-देन तो है कहीं भी है। समाज में बस यही नहीं है।

    ReplyDelete
  33. बिलकुल जरुरी नहीं है. और पढने के बाद सब लोग टिपण्णी करें ये भी जरूरी नहीं. मैं कम से कम १०-१२ ऐसे ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ पर वहां टिपण्णी नहीं करता.

    ReplyDelete
  34. कृपया हमारे विचार जानने के लिए यहाँ पढ़े

    ReplyDelete
  35. गुरुदेव आपने बहुत संवेदनशील मुद्दे पर हाथ डाला है इस बार !
    ब्लॉग जगत की एकमात्र यही तो पूँजी है ... यही हथियार है .. यही ईधन है ... यही सफलता का सूचक है ... यही हौसला है .... यही सहारा है !

    देखिये गुरुदेव नए ब्लागर्स के लिए तो सिर्फ यही जरिए है ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचने का ... अपने ब्लॉग से परिचित कराने का ! लेकिन अगर आप गंभीरता से देखें तो इन प्रतिक्रियायों का कोई ख़ास मतलब नहीं है ! 80 प्रतिशत टिप्पणियों का तात्पर्य महज इतना सा होता है कि बच्चू देख मैंने तेरी पोस्ट को झेला ... अब तेरी बारी है मेरी पोस्ट पढ़ने की ! हाँ ये अवश्य है कि निरंतर आवागमन से ब्लागर्स के मध्य सामंजस्य और मैत्री भाव स्थापित हो जाता है !

    कभी-कभी यहाँ समझदारी का अभाव दिखता है ... जो मन को कचोटता भी है ! लोगों को यह समझना चाहिए कि अगर मैंने या किसी ने कुछ आलोचना की है तो पोस्ट के सम्बन्ध में की है न कि व्यक्तिगत ! आलोचना को सहजता से लेने की जरूरत है ... जबकि लोग यहाँ खुन्नस खा कर बैठ जाते हैं .... यह नितांत गलत है !

    ReplyDelete
  36. भाई आपने लोगो की दुखती रग पर हाथ रख दिया है. अब हम यहां झूंठ मूंठ कह देंगे कि ये जरुरी नही है तो हमारे द्वारा पुर्व मे दिये गये कथन ही गलत हो जायेंगे. जो कि हमने खुले आम कहा है. हम तो इस मामले मे थ्री किक रूल फ़ोलो किया है हमेशा. किन्ही विशेष परिस्थितियों मे फ़ाईव किक तक की छूट रखी है , उससे ज्यादा हर्गिज नही.

    अब अगर आप विस्तृत रुप से समझना चाहे तो हम आज समझा देते है क्योंकि आज छुट्टी है और हमको और कोई काम धंधा आज है नही.

    आज हिंदी ब्लागिंग सिर्फ़ घर फ़ूंक तमाशा देखना है. तो ऐसे मे अगर आदमी टिपणी से ही संतुष्ट हो रहा है तो और क्या चाहिये? बिना प्रोत्साहन यह हिंदी को अंतर्जाल पर फ़ैलाने का काम नही होगा. इसमे कोई माने या ना माने..टिपणी लेन देन दुतरफ़ा यानि शादी मे लेने देने वाले लिफ़ाफ़े का व्यवहार है.

    अगर कोई इसे नही मानता तो वो आये और मुझे लगातार टिपणियां दे.आखिर कब तक देते हैं?

    और एक बात : कई तो ऐसे महारथी भी हैं जिनकी टिअप्णी देखकर ही समझ आजाता है कि इनकी पोस्ट आगई है. लिफ़ाफ़ा तुरंत जाकर लौटाना पडता है.

    भाई पंचो, चाहे आप हमे भला बुरा कह लो या जो आप कहलो पर हमारी तो आखिरी राय यही है कि ये शादी का लिफ़ाफ़ा है. आगे आपकी अपनी मर्जी. हमको जो लगा वो कह दिया. हम तो पाह्ले भी कहते आये हैं आज भी कह रहे हैं और अगर यह बात कुछ बदलती दिखेगी तो आगे नही कहेंगे.

    अब आपसे उम्मीद है कि आकर मुझे एक टिपाणी इसके बदले अवश्य देवें.:) ज्यादा देवे तो मनाही नही है. :)

    दोस्तो आज ब्लागिंग को पीठ खुजलाने की मेरा मतलब पीठ थपथपाने की ज्यादा जरुरत है. सो क्या फ़र्क पडता है, कोई आकर आपकी पीठ थपथपाता है तो आप भी थपथपा आईये.

    और इसका कारण है कि हम हर विषय के जानकार नही होते और कई विषय हमारे लिये नीरस भी होते हैं, पर वहां जाकर भी बढिया, बहुत खूब लिखना ही पडता है तो इससे अगर किसी की हौसला अफ़्जाई होती है तो करनी चाहिये. हम तो करते हैं पर थ्री किक रुल का ध्यान रखते हैं. कई लोग हमारी लिस्ट से इस कारण से बाहर होगये हैम.

    रामराम

    ReplyDelete
  37. हम इस पर अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं।
    टिप्पणी_ करी करी न करी
    टिप्पणी न कर पाने के कुछ मासूम बहाने हमारे लिये टिप्पणी तो मन की मौज है। जब मन , मौका, मूड होगा -निकलगी।टिप्पणी को अपने प्रति प्रेम का पैमाना न बनायें।

    ReplyDelete
  38. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  39. नहीं... जरुरी नहीं है .. टिप्पणियाँ कंटेंट पे भी मिलती हैं..

    ReplyDelete
  40. अपना लिखा पढ़वाने का ये भी अच्छा साधन है की आप लगातार सक्रीय बने रहिये, और सक्रीय बने रहने के लिए टिप्पडी करना जरूरी है, लोगों को आपका लिखा पसंद आएगा तो जरूर टिप्पडी करेंगे नहीं तो कुछ दिन में आपके पास आना बंद कर देंगे

    {ये तो मैं ऐसे ही कह रहा हूँ नहीं तो आप तो ये बात पहले से जानते हैं :) }

    वीनस केसरी

    ReplyDelete
  41. भाई लेनदेन तो बराबर होना ही चाहिए ऐसा मै नही कहता लोक कथाऐ कहती है। कोई भी बडी बात करने दो आशिष भाई !

    जीवन के फलसफे एक जैसे ही है। रीत रिवाज तो समाज की पुरानी देन है। उस मानसिकता से बहार् निकल ने मे कई वर्षो का समय लगेगा।
    आप सोचो, ज्यादा फोरवर्डता दर्शाकर आप ही आप मेरे दरवजे आऐ, मै तो आपके यहॉ मिलन-कुशल क्षेम, पूछने न आऊ, तो आप क्या कहेगे ?

    आप कहेगे कि-" करोडपती हो तो अपने घर पर ।"
    हम भी स्वाभिमानी है।"

    क्यो आशिष भाई ?


    जयजिनेद्र
    महावीर बी सेमलानी
    आभार/मगलभावानाओ सहित
    मुम्बई टाईगर

    ReplyDelete
  42. टिप्पणी कर कर पोस्ट भरी, ब्लॉगर आया न कोय .
    जो दिल में टिप्पणी धरे, उसका बाल न बांका होय ...

    ReplyDelete
  43. बिल्कुल । दे दनादन तो ले दनादन। हा हा । बहुत मर्मिक पोस्ट है वैसे यह। आप बिलीव नहीं करेंगे।

    ReplyDelete
  44. इस संदर्भ् मे एक और बात कहना चाहूँगी कि साहित्य के अन्य माध्य्म जैसे प्त्र प्त्रिकायें है उन मे भी पत्रों दुआरा अपने विचारों का आदान प्रदान होता है कभी लेखक आपस मे संवाद स्थापित करते हैं और कई बार पत्र प्त्रिकाओं के संपादक को रचनाओं और पत्रिका के बारे मे लिखा जाता है और ये संवाद सहित्य का एक अंग और रचना धर्मिता की गरिमा समझा जाता है और ऐसे ही कै पत्र महान सहित्यकारों की पुस्तक का रूप भी ले चुके हैं समय समय पर संस्मरण या आलेख के रूप मे भी छपते है इसमे अन्तर ये है कि आप्को ब्लोग पर पत छल जाता है कि कितनि टिप्पणैऎ किस को मिली है तो जो गम्भीर लेखन करते हैं उन मे अक्रोस्ज उभरना स्वभाविक है मेरा मनना ये है कि इस ओरे स्धिक ध्यान ना दे कर अपना अपना काम करते रहना चाहिये और टिप्पणी को गौण समझ कर महत्व नहीं देना चाहिये मैने कई ऐसे लोग भी देखे हैं जो कोज़ धेरों मैल भेज कर टिप्पणैए माँगते है अगर आप उनके ब्लोग पर कभी भी ना जाओ तो भी वो मैल भेजते रहेन्गे अपने किसी खास को या जिसे उस विश्य की समझ हो उसे टिप्पणी भेजन कोई बुरि बात नहीं मगर आप रोज सब को टिप्पणी के लिये मेल भेज कर परेशान करो ये सही नहीं अभी तो बलागिन्ग अपनी शिशु अवस्था मे ही है इसे बढने दीजिये अपने आप समझ आ जायेगी बस देखते रहिये इन शरारतों को और बचपन का स आनन्द उठाते रहिये आभार्

    ReplyDelete
  45. आप वाकई बधाई के पात्र है. सोचने और कुछ करने के लिए इतना बढ़िया मुद्दा जो दे दिया. सोचना यह पड़ेगा की क्या अच्छा लिखने के बावजूद टिप्पणी पाने के लिए टिपियाना जरुरी है. और करना यह पड़ेगा की मुझे भी कुछ लिखना पड़ेगा. लेकिन मुझसे पहले बहुत बड़े बड़े अपनी राय दे चुके है. फर्क इतना है की कुछ की राय से मैं सहमत हूँ कुछ से नहीं. अब भाई मैं तो गुफ्तगू करता हूँ. किसी को पसंद आएँगी किसी को नहीं. अब मेरी गुफ्तगू तो किसी भी मुद्दे पर हो सकती है. अब अगर वह आपको पसंद आ ही गई है तो टिप्पणी का हकदार तो मैं हूँ ही. लेकिन ऐसी कोई लालसा नहीं होनी चाहिए की टिप्पणी आनी जरुरी है. फिर टिप्पणी पाने के लिए टिपियाना कैसा. इतना भी जरुर है की एक कलाकार का जैसे तालिया हौसला बढाती है वैसे ही अगर कोई कुछ अच्छा लिखता है तो उसको भी हौसला मिलना चाहिए.

    ReplyDelete
  46. टिपण्णी देने वाले सब पाठक नहीं होते और हर पाठक टिपण्णी भी नहीं देता..
    महत्वपूर्ण बात ये है कि हमारे लिये ज़रूरी क्या है? पाठक या टिपण्णी ?

    बाकी सुधि ब्लोगरो ने इतना कुछ कहा है कि अब मेरे लिये कुछ शेष नहीं रहा..

    ताऊ के कुछ बढ़िया डायलोग्स की लिस्ट में ये एक और जुड़ गया.. टिपण्णी देना शादी का लिफाफा है... भई वाह :)

    ReplyDelete
  47. टिपण्णी देना शादी का लिफाफा है.. lagta to sahi hae

    ReplyDelete
  48. जब हम उनके घर गए तो वो सो रहे थे,जब वो हमारे घर आये तो हम भी सो रहे थे!!
    जैसी करनी वैसी भरनी....
    ऐसा ही हाल है अपनी ब्लॉग्गिंग का राय पाने के लिए राय देनी तो पड़ेगी है भला हमें उस बारे में ज्ञान भले ही ना हो....
    यह तो कह ही सकते है ना...''बहुत खूब''

    ReplyDelete
  49. Post se adheek is par aaye comments se -'kayee naye shbd aur naye 'vaky',naye 'ulaahane'..seekh liye...'gyan vardhan hua...'

    Is post ko --aap ne Ashish ji..'timepass' ka label diya hai..magar yah to serious topic ban chuka hai!timepass kahan??

    ReplyDelete
  50. पहले गोलमोल जवाब देता हूं, ऐसा नहीं है पर यदि आप किसी को पढ़ रहे हैं तो टिपियाएं जरूर। उससे लेखक को राय पता चलती है। पर साफ-साफ कहूं तो हिंदी ब्लोगिंग में तो ऐसा ही होता है। यदि आप किसी को टिपिया रहे हैं तो ही आपको टिप्पणी प्राप्त होगी। याद है मैंने एक सवाल पूछा था कि हमारे प्रोफाइल पर कैसे हमारा एक्टिव ब्लॉग सबसे ऊपर आजाए। उसका कारण यही था। मैंने किसी को पढ़ कर टिप्पणी की तो जवाब में मेरे दूसरे ब्लॉग पर जिसपर की ६ महीने से कुछ लिखा नहीं गया उस पर टिप्पणी प्राप्त हो जाती है। पर कुछ ऐसे ब्लागर हैं जो ये नहीं देखते कि कौन है जिस को वो टिपिया रहे हैं और उनको प्रतिउत्तर में टिप्पणी चाहते भी नहीं हैं। कुछ दिग्गज हैं। अंत में मेरा मानना है कि पढ़ो तो टिपियायो जरूर चाहे चार शब्द ही दो पर दो जरूर।

    ReplyDelete
  51. राय नहीं बना पाया हूं इस पर, पर मुझे लगता है कि ईमानदारी का तकाजा यही है कि टिप्पणी वहीं दी जाए जहां पोस्ट इस लायक हो। तभी टिप्पणी एक प्राकार का क्वालिटी-कंट्रोल का काम कर सकेगी। पर हिंदी ब्लोगों की शैशवावस्था को देखकर यह भी लगता है कि टिप्पणी देकर ब्लोगर का हौसला बढ़ाना भी जरूरी है।

    ReplyDelete
  52. आचार्य संजीव सलिल जी की यह टिप्पणी ई-मेल के जरिए मिली है- आशीष खण्डेलवाल

    हिंदी जगत में चिट्ठाकारी (ब्लोगिंग) का उपयोग अन्यत्र से बिलकुल अलग है. मूलतः चिटठा का उपयोग व्यक्तिगत दैनन्दिनी (डायरी) की तरह किया जाता है किन्तु हिंदी या भारत में यह सामूहिक मंच बन गया है. साहित्य में तो इसने अंतर्जाल पत्रिका का रूप भी ले लिया है. विविध रुचियों और विषयों की रचनाएँ परोसी जा रही हैं. सामान्यतः जो विधाओं के निष्णात हैं वे तकनीक से पूरी तरह अनजान या अल्प जानकर हैं. तकनीक के निष्णात जन बहुधा विधाओं में निपुण नहीं हैं. हिंदी का दुर्भाग्य यह कि ये दोनों पूरक कम स्पर्धी अधिक हैं. कविता 'गरीब की लुगाई, गाँव की भौजाई' की तरह हर किसी के मन बहलाव का साधन बन गयी है. हर साक्षर महाकवि और युगकवि बनने के मोह में अपने लिखे को भेजने और उन पर प्रशंसात्मक टिप्पणियों के लिए आग्रह करने लगा है. इसी क्रम में टिप्पणियों का आदान-प्रदान और चंद शब्दों का प्रयोग हो रहा है. रूपाकारविहीन कविता को 'सुन्दर' कहा जा रहा है तोजबकि क्या रूपवती को 'स्वादिष्ट' कहेंगे? दर्द से भरी मर्मस्पर्शी कविता पर 'आह'' नहीं 'वाह' की जा रही है. किसी साहित्यिक विधा के मापदंडों को समझने के स्थान पर खारिज करने का दौर है. 'चोरी और सीनाजोरी' का आलम यह की कोइ जानकार कमी बता दे तो नौसिखिया ताल ठोंककर कहता है 'यह मेरी स्टाइल है'.

    टिप्पणी से कोई अमर नहीं होता, अपना प्रचार आप कर प्रशंसा जुटानेवाला भी जनता है की बहुधा किसी रचना को पढ़े बिना ही टिप्पणी ठोंक दी जाती है. बहुत खूब, सराहनीय, लिखते रहिये, क्या बात है? अथवा रचना की कुछ पंक्तियों को कॉपी-पेस्ट करना आम हो गया है. समय बिताना या खुद को महत्वपूर्ण मानने का भ्रम पलना ही इस स्थिति का कारण है.

    अच्छी रचनाओं को समझनेवाले कम हैं तो बहुत टिप्पणियाँ कहाँ से आएँगी? इस स्थिति में सुधर केवल तभी संभव है जब जानकार रचनाकार एक-दुसरे को लगातार पढें, तिपानी करें और नासमझों के टिप्पणी भेजने के आग्रह पर मौन रहें. सामान्यतः रचना किसी योग्य न होने पर भी शिष्टता-शालीनता के नाते उत्साहवर्धन के लिए लिखी गयी टिप्पणियों का उपयोग आत्म-प्रचार में यह कहकर होता है कि इतने योग्य व्यक्ति ने भी इसे सराहा है. अर्चनाओं पर टिप्पणी में गुण-दोषों का विवेचन हो तो हर दिन शतक नहीं लगाया जा सकता. टिप्पणियों के गुण-स्तर या सामग्री को परखे बिना सिर्फ संख्या के आधार पर पुरस्कार देनेवाले भी इस अराजकता के जिम्मेदार हैं.

    सारतः यह सत्य है कि 'सब चलता है' और 'लघु-मार्ग (शोर्ट कट) के आदी हम टिप्पणियों में भी बेईमानी पर उतारू हैं. बहुधा प्रशंसात्मक टिपण्णी-लेखन आदान-प्रदान (व्यापार) ही है. अल्प अंश में अच्छे रचनाकार, विद्वान् विवेचक तथा सुधी पाठक भी टिपण्णी करते हैं और ऐसी एक भी टिप्पणी मिल जाये तो रचनाकर्म सार्थक लगता है. मैं अपने रचनाओं को मिलनेवाली ऐसी टिप्पणियों को ही महत्त्व देता हूँ संख्या को नहीं.

    ReplyDelete
  53. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  54. पहली बात, महिलाओं के लिए ये बात लागू नहीं होती।

    दूसरी बात, आदमी में इतना शिष्‍टाचार तो होना ही चाहिए।

    ReplyDelete
  55. जरूरी तो कतई नहीं है। पर मेरे हिसाब से यह संवाद का पुल जरूर है जो आपके और दूसरे लोगों के बीच बनता है।

    ReplyDelete
  56. अगर किसी की निरर्थक ,अरुचिकर पोस्ट पर भी आप टिप्पणी करते हैं तो इसका अर्थ यह है कि आप केवल टिप्पणी के लिये टिप्पनी कर रहे हैं .अन्यथा नहीं. मेरी राय यह है कि अगर पोस्ट मे दम होगा तो वह अपने लिये नये नये टिप्पणीकार रोज़ पैदा करेगी .सो सार्थक पोस्ट लिखिये .

    ReplyDelete
  57. वैसे मैं काफी विलम्ब से आया - लेकिन मुद्दा महत्वपूर्ण है इसलिए टिप्पणी देना अपना धर्म समझा, और टिपिया दिया

    टिप्पणी करना एक स्वत: प्रक्रिया है। जिस प्रकार विभाव अनुभाव संचारी भाव एवं किसी स्थायी भाव के योग से पूर्णता को प्राप्त करके किसी रस की निष्पत्ति होती है, उसी प्रकार अच्छी पोस्ट को पढ़ने के बाद हमारे मन में भी कई तरह की प्रतिक्रियायें उत्पन्न होती हैं। जब हम अच्छी पोस्ट पढ़ते हैं तो स्वत: ही हमारे मुंह से निकल पड़ता है वाह! वाह! । पहले के समय में हम मन में ही वाह वाह करके रह जाते थे क्योंकि साधनों की कमी होने के कारण हम उस व्यक्ति के प्रति अपना आभार प्रकट करने में अपने को असमर्थ पाते थे जिसके सत्प्रयासों के कारण हमें आनन्द की प्राप्ति हुई। यह स्थिति ऐसी ही होती थी जैसी कि हम कालिदास की किसी रचना के कितने ही प्रसन्न क्यों न हो जायें लेकिन हम रचनाकार से अपनी खुशी का इजहार नहीं कर सकते और मन में ही धन्यवाद ज्ञापित करके सन्तोष करते हैं। किन्तु आज के ब्लागरी के युग में हम इस अवसर से चूकना नहीं चाहते, और जैसे ही हमें किसी का कोई विचार पसन्द आ जाता है या उसके बारे में हमारे मन में कोई जिज्ञासा या प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है तो हम तत्काल लेखक से उसे साझा करते हैं जिसकी परिणति टिप्पणी होती है। मैं अपवादी टिप्पणीकारों की बात नहीं करता जो कि केवल टिप्पणी पाने के लिए टिप्पणी करते हैं।

    ReplyDelete
  58. प्रतिक्रिया शक्ति शक्ति हवा(लेख) का रूख मोड सकती है, टिपियाना ज्‍रूरी नहीं,
    हमें comments power का सदुपयोग करना चाहिये

    ReplyDelete
  59. में ब्लॉग्गिंग में कच्चा हूँ ,सो कुछ भी नही बोलुगा . दरअसल मेरे लिए टिप्पणी लिखना सिर्फ़ संवाद का ज़रिया नही हैं ,इससे मुझे लगता हैं मैने किसी एसी पोस्ट पर जिसने मेरे दिल को छू लिया हो ,के लिए अपना पाठकिय धर्म अदा किया हैं . इतने सारे ब्लॉग हैं में सभी को चाहकर भी नही पढ़ सकता हूँ ,हा ईमानदारी से यह स्वीकार करूँगा की मुझे खुशी होगी यदि सभी सीनियर ब्लॉगर्स ,मुझे ब्लॉग्गिंग सीखने में मदद करे ,साथ ही यह भी बतलाए में किस तरह लिख रहा हूँ .

    ReplyDelete
  60. is hath de us hath le
    अधिकांश लोग तो टिप्णी पाने के लिए ही टिप्णी कर रहे हैं ,लेकिन कम से कम मैं ऐसा नहीं करता ,मेरी टिप्णी जिन मित्रों को मिली है वे जानते हैं की मैं अच्छा है सुन्दर है न लिखकर सार्थक टिप्णी करता हूँ हाँ अगर मुझे किसी लेख कविता ग़ज़ल में कमी या अशोभनीय लगे तो मैं ब्लॉग पर टिप्णी न कर उन्हें मेल करता हूँ अब तक मेल की गई अधिकाँश टिप्णियों का स्वागत हुआ है हाँ कुछ लोग नाराज भी हुए और वे अब मेरे ब्लॉग पर टिप्णी नहीं करते ,ग़ज़ल क्षेत्र में कुछ लोग खुद को गुरु मानकर केवल अपने शिष्यों की रचना पर टिप्णी करते हैं और अनेक बार तो बचकानी रचना को बड़े शायरों के समक्ष कहने में नहीं चूकते ,लेकिन अधिकतर तो इस हाथ दे उस हाथ ले पर ही चल रहे हैं

    ReplyDelete
  61. मजा आ जाए agar........................
    आशीष जी जैसे दुनिया में सब तरह के लोग होते हैं ऐसे ही ब्लॉग की दुनिया में भी तो उसी दुनिया के बाशिंदे ही आते हैं बाबा तुलसी कह गए हैं की तीन तरीके के पेड़ होते हैं एक वह जो केवल फूल देते है एक जो फूल और फल दोनों देते हैं तीसरे केवल फल जैसे कटहल ,इसी तरह ब्लॉगर भी तीन तरह के होते हैं १ केवल पढने वाले ,वे पढ़ते तो हैं लेकिन टिप्णी नहीं करते २ पढ़ते भी हैं टिप्णी भी करते हैं ३ जो केवल टिप्णी करते है पढ़ते नहीं अधिकाँश ऐसे लोग ही टिप्णी के बदले टिप्णी में विश्वास करते हैं ,अब मैं आपके ब्लॉग को पढता हूँ लेकिन आज से पहले टिप्णी न कर पाया असल में भारत में मैं अस्पताल लेखन व् अन्य कामों से वक्त की कमी पता हूँ आजकल योरोप में छुटियाँ मना रहा हूँ तो मित्रों के ब्लॉग पर टिप्णी कर रहा हूँ ,हाँ मैं अछि बहुत सुन्दर न लिख रचनात्मक टिप्णी करने मैं विश्वास करता हूँ,
    आप बहुत ही रचनात्मक कार्य कर रहे हैं,एक सवाल भी पूछ लूं चलते चलते ब्लॉग पर नो वाल विजेट तो लगा लिया अब अगर उसकी अनुक्रमणिका ब्लॉग साइड में लगाना और बता दें तो मजा आ जाए

    ReplyDelete